वेदनाओं की वीणा पर सजाकर
पीडा के सात सुर विरह के गीत।।
झिंगुरों का अनवरत राग अनहद
अतृप्त कामनाओं में निहित प्रीत।।
भाव प्रवणता सुसंगत वाद्ययंत्रक
उन्मुक्त असीमित प्राकृतिक संगीत।।
कलरव करतल साध्य ध्वनि संगत
स्थिरचित विश्रामित रागी मौन मीत।।
नीरसता निर्मित अन्तर्द्वन्द्वीय नीरवता
आन्तरिक कोलाहल एकाकी मनमीत।।-PKVishvamitra
Ati sundar
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धन्यवाद!! मेरे सम्मानित मित्र मधुसूदन जी,आप मेरे शब्दों का मर्म स्पष्ट कर लेते हैं।
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स्वागत आपका।
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बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी।
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धन्यवाद!!स्नेही रजनी जी।
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ठाकुर जी विरह वेदना राग को बहुत ही सुन्दर शब्द दिये है आपने।
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सचमुच?.
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जी बिल्कुल सच में
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