तराशकर कर हसरतों के ऊंचे पहाड
एक खुशनुमां मूरत बनाना चाहता था।।
काटकर सख्त पत्थरीली चट्टानों को
दरियाये रहमदिल बहाना चाहता था।।
चुभती हैं उजडी क्यारियां आंखों में
अहदे चमन नूरानी बनाना चाहता था।।
सितारे हैं बोझिल कितने आसमां में
खल्के असल आदम बनाना चाहता था।।
तंगदिली की शिकार हो गयी है दुनियां
गजले मेल मिलाप सुनाना चाहता था।।
कत्लोगारत से दहशतज़दा है हर शख्स
बस्त निजामें अमन बसाना चाहता था।।
डरावने ख्वाबों ने पैदा की हमेशा हौल
ख्वाब कोई खूबसूरत दिखाना चाहता था।।
तमाम जिल्लतें झेलती है अदबे गर्जियत
एक अदद घर वास्ते अदब बनाना चाहता था।।-“PKVishvamitra”