||असलियत||

बदलते मौसम जैसी इन मौहब्तों को

कितने लोग असल में जानते पहचानते हैं,

सुराहियों में कैद कुईयांओ का पानी

कितने लोग पीने से पहले खूब छानते हैं,

यकीन का सलीबी सच ही है अंधापन

आशिक कब लकीरे तकदीरी बांचते हैं,

वक्त के साथ ठंडा होता है इश्के तूफान

कितने लोग दौरे उफान गरमी नापते हैं,

शर्तों की बिसात है ही दिमागी तिजारत

बर्फीले पहाड क्या धूल भी पहचानते हैं,

तासीर के मुताबिक खेलना है मुनासिब

दरिया क्या कभी अपने किनारे लांघते हैं,

आईनों की औकात पर मत उठाओ सवाल

बेजुबान पत्थर भी हश्रे जुबांतराशी जानते हैं।

“PKVishvamitra”

9 विचार “||असलियत||&rdquo पर;

टिप्पणी करे