अरमानों का जुआ खेलते खेलते
लगाई बेशकीमती जिंदगी दांव पर।।
अक्ल पर पड गये बडे बडे पत्थर
कुल्हाडी चला दी हो जैसै पांव पर।।
सनक के घोडे पर था सवार अंधापन
शर्त लगाई आती जाती धूप छांव पर।।
द्रोपदी को तो बाजी में हारना ही था
निगाह जो जम गयी थी पांच गांव पर।।
किस्मत के उलट फेर का खेल है जुआ
लटकी है हमेशा जिंदगी सलीबे दांव पर।।
गांठ थी दिल की खुलते खुलते उलझ गई
चांद सा मुखडा रगडा हो जैसे झांव पर।।-PKVishvamitra
ठाकुर जी ये जिंदगी जुआ ही तो है जीवन भर कुछ ना कुछ पाने की लालसा में ताउम्र दुख ओर सुख के बीच खेलते ही रहते है।बहुत.अच्छा लिखा है आपने
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वह लिखने की कोशिश की है जो सच है।
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Chhayavad ki jhalak h
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