लेता रहा मौसम लगातार बदलावी मिजाज से करवटें
सबकुछ बदल गया आदते सवालात नहीं बदल पाये हैं।।
दिमाग-ऐ-आसमां में कौंधती हैं बदमिजाज बिजलियां
वक्ते जरूरत के मुताबिक ख्यालात नहीं बदल पाये हैं।।
जुस्तजू का रेगिस्तान है सोच के दरिया से भी लम्बा
ठुल्लम-औ-ठुल्ले उम्मीद-ऐ-करामात नहीं बदल पाये हैं।।
आजाद ख्याली के पिंजरे में कैद होती हैं बंदिशे तमाम
तंगदिली के दायरों में सिमटी हवालात नहीं बदल पाये हैं।।
ख्याल की कब्र में सवाल के कफन से लिपटा है मलाल
सच है कि हम सवालात-औ-ख्यालात नहीं बदल पाये हैं।।-PKVishvamitra
बहुत ही खूबसूरत रचना है।
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