लफ्फाजी के ढेर में उम्मीदें दफन हैं,
नाउम्मीदी की लाश पर बेबसी का कफन है,
वो शिगूफों की तराजू से अरमान तौलता है,
वो मजहबिया बादलों की बूंदों में जहर घोलता है,
शातिराना ढंग से हालातों को ढालकर सलीब की शक्ल में
वो उन पर लटकी हुई लाशों की जेबें टटोलता है।-पीके